एक आंख मार गई
मनहरन कवित्त
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एक आंख मार गई ,दिल को उजाड़ गई।
जीभ को निकाल कर ,नींदें मेरी छीन ली।
कब दिन रात आये , कब दिन रात जाए ,
चैन नही एक पल , हालत बिगाड़ दी।
उसकी तो दिल्लगी थी ,मेरी बस बन्दगी थी,
बनती नही भूलते , नेह कील गाड़ दी।
उसकी हया की हँसी ,दिल बीच मेरे फँसी,
कलेजे को चीर कर, जिंदगी कबाड़ की।
कलम घिसाई