एक अकेला सब पर भारी
एक अकेला सब पर भारी
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एक अकेला सब पर भारी,
कहता खुद को मैं भीखारी।
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साधन संपन्न,होगा ये भारत,
मन की बात करे हितकारी।
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खुद की झोली कर के खाली,
दे कर यारों को निभाई यारी।
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संस्थाओं पर कर-कर काबू,
की है दुश्मन की दूर खुमारी।
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जुमलो का सरदार निकला,
मजमा लगाता जैसे मदारी।
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है यहाँ,सभी की जैब खाली,
बताओ किस पे नही उधारी।
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सब कुछ था उसने बेच दिया,
है न कितना गजब व्यापारी।
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सिंनकी बड़ा, फ़कीर हमारा,
करे, सता मद में चूर सवारी।
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है मस्त सभी लुटरे,क्यूँ न हो,
जब राजा हो तलवार दुधारी।
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जितना चाहे तुम जो कर लो,
अब तो चले ना एक तुम्हारी।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”