एकांत में रहता हूँ बेशक
एकांत में रहता हूँ बेशक
पर अकेला मैं नहीं
हूँ वसूलों पर ही कायम
जमीर का सौदा नहीं।
हार मत, प्रतिकार कर
तब दिन तेरा फिर जायेगा
बिन लड़े जो हार माना
जग में अपयश पायेगा।
जो अब भी सुप्त जमीर तेरा
घुट घुट के तू मर जायेगा
मृत्यु के उपरांत भी क्या
खुद को माफ़ कर पायेगा।
जिंदादिली से जीना है जो
बचपन बचा कर रखना जी
महसूस उम्र न हो कभी
आयुगत सोपान पर जी ।
हमसफ़र सब काम के
और सबके अपने मोल है
संकटों में साथ दे जो
हमसफ़र वही अनमोल है।
आवागमन के बंधनो से
मुक्त होना है अगर
दोमुहें दोहरे चरित्र से
मुक्त रखो तुम सफर।
सृष्टि का यह खेल शास्वत
जैसे किं दिन व रात है,
निर्मेष जीवन में यथा ही
सूखा कभी बरसात है।
निर्मेश