एकलव्य
उस वीर की याेग्यता काे निखरने से पहले राेंद दिया,
जाति की दुहाई देकर उसकाे ठुकरा दिया,
आस्था थी उसकी , आपकी छवि काे गुरु बनाया,
लक्ष्य और अभ्यास ने उसकाे अर्जुन से महान बनाया,
अपने वचन के लिये, किसी के सपनाे काे कुचल दिया,
अपनी नजराे में स्वयं काे, नीचे गिरा लिया,
विश्वास आपका डिगा ,बाेलाे द्राेण बाेलाे द्राेण ऐसा क्याे किया,
निज स्वार्थ के लिये, अपनी विद्या काे बेचा,
हिरणधनु का पुत्र वाे, सच्ची थी लगन, एकाग्रता से ज्ञान काे सींचा,
हाेकर परिपक्व धनुर्विद्या में, आपके हर शिष्य पर भारी था,
शब्द भेदी बाण का वाे ज्ञाता, निषाद जाति का गाैरव, गुरु आज्ञाकारी था,
हंसते हंसते दक्षिणा में, दिया दाहिने हाथ का अंगूठा काट, नही वह डगा,
धरा पर जाे गिरा, वाे आपका मान था, झुक गया सिर आपका, वाे ताने सीना खड़ा,
बाेलाे द्राेण, बाेलाे द्राेण …….
एक द्रुपद से बदले के लिये, दाे दाे प्रतिभावाे काे जाति की चाेट दी,
चाेट खाकर वाे महवीर बने, एक काे श्रापित हाेना पड़ा, दूजे काे चाेट दी,
धन्य है एकलव्य, धन्य उसकी धनुर्विद्या, धन्य उसकी गुरुभक्ति जाे सिखा गया,
निषाद जाति काे बिना अंगूठे से धनुर्विद्या मे सशक्त किया,
चर्चा जब गुरु भक्ताे की हाेगी, गुरुभक्ति मे नाम एकलव्य का सबसे पहले आयेगा ,
चर्चा जब धनुर्धराे की हाेगी, धनुर्धराे में नाम एकलव्य का भी आयेगा,
गुरुओ की जब बात आयेगी, द्राेण तुम्हारा कलंक हमेशा याद आयेगा,
जाे जैसा बाेएगा, वाे वैसा ही पायेगा,
एक सच्चे शिष्य का अंगूठा काटा,
कल काेई शिष्य आपका सिर काटेगा,
अर्जुन जैसा शर संधान काेई नही करेगा,
एकलव्य की ही तरह सब शर संधान करेंगे,
(आज भी बाण तर्जनी और मध्यमा से ही चलाया जाता, काेई अंगूठे का उपयाेग नही करता )
।।।जेपीएल।।।।