*एकलव्य*
द्रोणाचार्य जैसे गुरु ने ये कैसा कृत्य कर डाला।
गुरुओं की गरिमा को जग में तहस नहस कर डाला ।।
शिष्य का रिश्ता गुरु से क्या है सिखलाया था उसने।
कुटिल चाल ने मांगा,छड़ में दिया अंगूठा उसने।।
सिर्फ अंगूठा नहीं था,क्योंकि वो था एक धनुर्धर।
द्रोणाचार्य को सौंप दिया था उसने सारा जीवन ।।
श्रेष्ठ धनुर्धर हो अर्जुन यह किसी तरह करना था।
प्रतिज्ञा पूरी हो अपनी इस लाज को भी रखना था।।
धनुर्विद्या को गहराई से जान रहे थे गुरुवर।
एकलव्य की आभा को पहचान गए थे गुरुवर ।।
समझ गए थे बांणों का संधान न इसने छोड़ा।
इसके आगे टिक नहीं पाएगा कोई भी योद्धा ।।
जगत में नाम कमाएगा सबसे आगे होगा।
एकलव्य दुनिया का सबसे बड़ा धनुर्धर होगा ।।
✍️ प्रियंक उपाध्याय