एकलव्य बनना होगा
घात प्रतिघात कि इस दुनिया में
अपने आप को
स्थापित करने के लिए तुम्हें लड़ना होगा
लड़कर ही तुम्हें स्थापित करना होगा
तुम्हें धोखे से अर्जुन नहीं
एकलव्य बनना होगा
एकलव्य बनना होगा
क्रूरता लिए हुए जीने वाले गुरु
और समाज में व्याप्त गंदगी को सुधारने के लिए
तुम्हें धोखे से अर्जुन नहीं
एकलव्य बनना होगा
एकलव्य बनना होगा
कौन देता है इतना महत्व अपने गुरु को
सब यश के पीछे लगे हुए हैं
गुरु भी अपनी प्रसिद्धि चाहता है
और शिष्य भी अपनी उच्चता
उन्हीं रुढ़िवादीता से लड़ने के लिए
तुम्हें अर्जुन नहीं
एकलव्य बनना होगा
एकलव्य बनना होगा
महानता के उस शिखर पर पहुंचने के लिए
तुम्हें लड़ना होगा
गंदगी कहां नहीं
राज महलों से लेकर झुग्गी झोपड़ियों तक व्याप्त है
फिर भी तुम्हें लड़ना होगा
तुम्हें अर्जुन नहीं
एकलव्य बनना होगा
एकलव्य बनना होगा
अपने आप को स्थापित करने के लिए
कर्म पथ पर चलने के लिए
अन्याय से लड़ने के लिए
बहरूपिये रूपी शासन के लिए
और फेकू जैसे देशद्रोही के लिए
मानवता को नष्ट करने वालों के लिए
तुम्हें अर्जुन नहीं
एकलव्य बनना होगा
एकलव्य बनना होगा
*****सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा ADV.******