ऋषि का तन
रातों में एक अच्छी नींद
आँखों में यौवन की माया
अब नही आते
अब वो उन्हें स्पर्श भी नहीं कर पाते
जैसे सावन अब
नही आता ,
भादों भी यौवन की
माया को जगा नही पाता
एकाग्र होके जो ध्यान करते है
जो कभी दिन रात न
कुछ पान करते है जो
विश्व को ध्यान से परिचय कराते
जो हिमालय के ऊचे उच्छे
शिखरों पे भी अर्ध वस्त्र
परिधान करके
जन जीवन में ज्ञान भरते
कुछ युवान भी
सिद्धी मे तत्पर रहते
न जाने कैसे ये
भोग विलास से दूर रहते
ऋषियों का जैसे तन
भी न ढलता
आखिर शीत के चादर पे
बैठ कोई कैसे ध्यान करता