ऋतुराज वसंत
ऋतुराज वसंत (वसंत पचंमी )
पेड़ पौधों पर नए पत्ते आने लगें, मौसम सुहावना होने लगा , जाड़ा जाने लगा , आम की डालियां बोरों के भार से नमने लगे हैं , सरसो के खेतो में पीले फूलों ने खिलखिलना शुरु कर दिया हैं । यह सभी संकेत ऋतुराज वसंत के आगमन का हैं ।
वसंत ऋतु , ग्रीष्म ऋतु , वर्षा ऋतु , शरद ऋतु , हेमंत ऋतु और शीत ऋतु अपने देश में यह छह ऋतुएँ होती हैं । इन छह ऋतुओं में वसंत को “ऋतुराज ” कहते हैं ।
वसंत पचंमी का पर्व हर वर्ष अपने यहाँ माघ शुक्ल पंचमी को मनाया जाता हैं ।
या देवी सर्वभूतेषु , विद्या रूपेण संधिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
वसंत पचंमी ज्ञान की देवी माँ सरस्वती को समर्पित हैं ।
कवियो , कलाकार , लेखक-साहित्यिक , कलाप्रेमी , एवं गीत- संगीत सभी को वसंतोत्सव अपना महत्त्वपूर्ण कला प्रदशर्न का ऋतु लगता हैं ।
देखो बसंत ऋतु है आयी ।
अपने साथ खेतों में हरियाली लायी ॥
किसानों के मन में हैं खुशियाँ छाई ।
घर-घर में हैं हरियाली छाई ॥
हरियाली बसंत ऋतु में आती है ।
गर्मी में हरियाली चली जाती है ॥
हरे रंग का उजाला हमें दे जाती है ।
यही चक्र चलता रहता है ॥
नहीं किसी को नुकसान होता है ।
देखो बसंत ऋतु है आयी।
माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को सरस्वती और लक्ष्मी देवी का जन्म दिवस भी माना जाता है। इस पंचमी को वसंत पंचमी कहा जाता है क्योंकि वसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु का आगमन होता है, जो सभी ऋतुओं का राजा होता है। हिंदू धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। वसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस वर्ष वसंत पंचमी 25 जनवरी 2023 एवं 26 जनवरी 2023 अर्थात माघ शुक्ल पंचमी को है। आइए जानें वसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं।
बसंत पंचमी तिथि
पंचांग के अनुसार, माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10 बजकर 28 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल वसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी।
धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। वसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस वर्ष वसंत पंचमी 25 एवं 26 जनवरी अर्थात माघ शुक्ल पंचमी को है। आइए जानें वसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं।
वसंत पंचमी के दिन ज्ञान और बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
देवी सरस्वती पृथ्वी पर अवतरित हुईं
जब ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्माजी ने जीवों और मनुष्यों की रचना की और जब उन्होंने सृजित सृष्टि को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि यह निस्तेज है । वातावरण बहुत शांत था तथा उसमें कोई आवाज या वाणी नहीं थी। उस समय, भगवान विष्णु के आदेश पर, ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। धरती पर गिरे जल ने पृथ्वी को कम्पित कर दिया तथा एक चतुर्भुज सुंदर स्त्री एक अद्भुत शक्ति के रूप में प्रकट हुई। उस देवी के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में मुद्रा तथा अन्य दो हाथों में पुस्तक व माला थी। भगवान ने महिला से वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की धुन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, मनुष्यों को वाणी प्राप्त हुई। उस क्षण के बाद, देवी को सरस्वती कहा गया। देवी सरस्वती ने वाणी सहित सभी आत्माओं को ज्ञान और बुद्धि प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि इस पंचमी को सरस्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह घटना माघ महीने की पंचमी को हुई थी। इस देवी के वागेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी और वाग्देवी जैसे अनेक नाम हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण, उन्हें संगीत की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। वसंत पंचमी के दिन ज्ञान और बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
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राजू गजभिये
Writer & Counselor
दर्शना मार्गदर्शन केंद्र , हिंदी साहित्य सम्मेलन बदनावर , जिला धार (मध्यप्रदेश)
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