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14 Feb 2022 · 1 min read

‘ऋतुराज वसंत’

निरख रूप ऋतुराज का,
ठहर गए रति नैन।
पीत छटा में भीज कर,
बहा हृदय का चैन।।

ठिठुरन देख ठिठक गई,
दिनकर ने बढ़ाया ताप।
ढोलक झांझ मृदंग पर,
थप-थप पड़ती थाप।।

आम्र मंजरी खिल गई,
महकी लगे बयार।
कोयल कूके यूँ लगे,
बजे हृदय के तार।।

मंद मलय समीर चली,
सर सर करते पात।
पीत वर्ण से दमक रहा,
माँ वसुधा का गात।।

भिन्न रंग के फूल खिले,
तितली करती नर्तन।
भ्रमर पुष्प रस पान करे,
हुआ मस्त वन उपवन।।

बालक हाथ पंतग ले ,
चहुँ दिस करें कलोल।
माँ पीछे भागी फिरें,
ढूँढें इत-उत डोल।।

चले तीर जब मदन के,
बच न सके नर नार।
ले अवलंबन स्नेह का,
मिलकर उतरें पार।।

पवन सुंगधित बह रही,
पुष्प पराग ले हाथ।
प्रिया पिय के संग चली,
ले हाथों में हाथ।।
✳✳✳✳✳✳
©®

Language: Hindi
612 Views
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