ऋतुराज बसन्त
ऋतुराज बसंत ने, किया धरा श्रंगार
खिले हुए नाना सुमन, भीनी चले बयार
सजी-धजी सृष्टि कहे, सुन प्यारे इंसान
ईश्वर ने जग को दिया, एक बड़ा वरदान
प्रेम जगत का मूल है, प्रेम है रब का नाम
सकल सृष्टि हर जीभ में, रमता एक समान
अक्षय प्याला प्रेम का, प्रकृति है भंडार
रूप राशि रस गंध से, भरा हुआ संसार
पवन बसंती दे रही, जीवन का संगीत
जग में रहना प्रेम से, ओ मेरे मनमीत
सुरेश कुमार चतुर्वेदी