ऋतुराज बसंत
धानी पगड़ी, पीत वसन तन,
देख सखी ऋतुराज हैं आए !
सकल तमस को किये पराजित,
मंद-मंद मुसकाये दिनकर !
नव बसंत का स्वागत करने,
शगुन गीत मृदु गाये अम्बर,
कुसुम- कली निज लोचन खोले,
नवल बसंत मनहि मुसुकाये
देख सखी ऋतुराज हैं आए !
प्रकट भई माँ हंसवाहिनी,
वीणा अरु पुस्तक ले कर में !
आभूषण धरणी ने धारे,
नव उत्सव यह क्षिति-अम्बर में !
ताल, तलैया, सरिता विहसे,
कोयल मीठे बैन सुनाये,
देख सखी ऋतुराज हैं आए !
वन-उपवन में चहल पहल है,
मंद पवन, चातक आतुर हैं !
कैसी धूम मची धरणी में,
रतिविलास को खग आतुर हैं !
ले मकरंद मधुप सब गूंजत,
सुर दुर्लभ क्षण कहि नहि जाए,
देख सखी ऋतुराज हैं आए !
सकल विटप अब भये पल्लवित,
चहकत शुक-पिक निज ही वाणी,
मानुष, जलचर, खग, चौपाये,
सखी अनंदित हैं सब प्राणी !
अबके फाग हमहि संग खेलो,
जाने न दूं बिन रंग चढ़ाए,
देख सखी ऋतुराज हैं आए !
– नवीन जोशी “नवल”