ऋतुराज का हुआ शुभारंभ
चली बहारे सर-सरासर
शीतल-शीतल मध्यम- मध्यम
तन अंतर छू जाती अन्दर
मंगल बेला छाई उपवन
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
वन पलास केसरिया छाया
बोर आम्र ने मन बहलाया
प्रकृति नूतन स्वरूप बनाया
सुन्दर- सुन्दर मनभावन
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
कोकिल मधुर तान छेड़ी
भ्रमर गीत ने राग छड़ी
राग रागिनी मधुर धुन में
लीन होता सबका मन
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
सेमल आच्छादित सुमन खिलाए
पीत चुनर से खेत लहराए
मयूर ने अपने पंख फैलाए
चरम सीमा तक सब का आनंद
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
मधु मन हिचकोले खाती
प्रियतमा की याद सताती
दूर देश गए मेरे साजन
अब तो लौट आ साजन
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ
विद्या जीवन सुखद बनाती
ज्ञान विज्ञान का पाठ पढ़ाती
ज्ञान की देवी सरस्वती को
शत-शत मेरा है नमन्
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
प्रकृति की छटा अतुलित
विष्णु चित् भी हुआ प्रफुल्लित
पुष्प लता मोहक सुरभि में
डूबता जाता मेरा मन
ऋतुराज का हुआ शुभारंभ।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’