ऊपरी आवरण
वो जब शिफ़ान की साड़ी पहन कर निकलती है
सबको बड़ी कमसिन सी लगती है
सब उससे रश्क़ करते हैं
उसकी खिलखिलाती हँसी से
उसकी तनी गर्दन से
उसकी लचकती चाल से
उसकी आँखों के रूआब से
उसकी अदा उसके शबाब से
पर कोई ये नही जान पाया आज तक
कि उसके पैरों की कानी ऊँगली का जो नाख़ुन है
वो बेहद खुरदुरा है
वो अपने कामों में इतनी उलझी रहती है
पसीने से तर – ब – तर सब करती रहती है
उसको सर उठाने की फ़ुर्सत नही मिलती है
इतना झुकने के बाद भी
वो अपना नाख़ुन देख नही पाती
नही तो वो उसको अच्छे से तराशती
या पार्लर जा पैडिक्योर करा आती
लेकिन बाहर वो बहुत कम जाती है
अपने काम से समय ही नही निकाल पाती है
पर वो जब शिफ़ान की साड़ी पहन कर निकलती है
वो नाख़ुन उसकी सारी साड़ियाँ नीचे से फाड़ देता है
पर उसे कोई नही देख पाता है
और ना ही दिखता है
उसका नक़ली खिलखिलाना
दिखता है तो बस
उसका कमसिन होना
उसकी तनी गर्दन
उसकी लचकती चाल
उसकी आँख का रूँआब
उसकी अदा उसका शबाब ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 20/05/2020 )