उड़ गए बच्चे परिंदों के…
कोर्ट में भी जुर्म का ये सिलसिला होता रहा
झूठे सबूतों की बिना पर फैसला होता रहा
चंद सिक्के फेंककर वो चैन से सोए मगर
जिंदगी में मुफ़लिसों के जलजला होता रहा
रात भर आँखों में छुपकर नींद भी जगती रही
उलझा हुआ जज्बात में मन बावला होता रहा
हम चुराकर आये हैं और वो बचा के गए नजर
दो दिलों के दरमियाँ यूँ फासला होता रहा
वो निखर आये बिछड़कर और कुछ ज्यादा मगर
रंग मेरा धीरे-धीरे साँवला होता रहा
हँसना तो आदत थी उनकी मेरी हर इक बात पर
बेवजह गुमराह दिल का काफिला होता रहा
उड़ गए बच्चे परिंदों के बड़े ज्यों-ज्यों हुए
कुछ इस तरह टहनी पे सूना घोसला होता रहा