उस माँ का लाल अब लौटेगा नहीं
ए भोर मुझे दे दे थोड़ी सी उजास,
बाँट दू वहाँ जहाँ सिर्फ अँधेरे बसते हैं,
कि अँधेरे से उपजी सिसकियाँ डराती हैं बहुत,
थोड़ी सी चमक और कौमुदी दे चाँद तू अपनी,
उस विरहिन के मन को शांत कर आऊं,
मण्डप से देखा नहीं जिसने अपने भरतार को,
फूलों से कह दो थोड़ी रंगत दे दें मुझे,
गमगीन उदास चेहरे बहुत मलिन से हैं,
रंग बिरंगी दुनिया पर उनका भी तो हक है,
ऐ विटप कुछ कन्द दे,तटिनी तू जल दे जरा,
भूखे बच्चों के चेहरे कितने कुम्हलाये से हैं,
ए धरणी तू धीरज धरना सिखा दे उस माँ को,
कहकर गया था कि जल्दी ही लौट आऊंगा,
उस माँ का लाल अब लौटेगा नहीं।
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”