उस पार
सब जा चुके हैं
वहाँ
उस पार
मैं यहाँ हूँ
सोचती हूँ
क्या कोई मुझे याद करता होगा
वहाँ
जैसे मैं याद करती हूँ
यादों के प्रतिबिम्ब में
सब साफ नजर आता है
मैं देख सकती हूँ
सुन सकती हूँ
महसूस भी करती हूँ
बस छू नही सकती
उन यादों में
बहुत कुछ शामिल है
बहुत लोग शामिल हैं
जाने कितनी शामें
दिन ,दोपहर
ओसारा आँगन दालान
बस यादों में रह गये हैं
और एक इंतज़ार भी
कसकता हुआ
उन अपनो से मिलने का
जो हैं उस पार
जीवन के