उस ओर ..
उस ओर…
छुपी गवाक्ष की आड़
सिमटी खड़ी इस छोर
झांक कर देखूँ विस्मित
आख़िर क्या है उस ओर
प्रश्न ये करता विचलित
क्या उस पार भी वेदना
सपनों के जर्जर महल
बिसरी सुध सोई चेतना
वही विरह की भीगी रातें
दृगों से रिसते होंगे प्राण
कसती काल की कुंडली
क्या सम्भव होगा परित्राण
रेखांकन I रेखा
*गवाक्ष-खिड़की
*परित्राण- पूर्ण रक्षा