उसे आज हम से मोहब्बत नहीं है
उसे आज हम से मोहब्बत नहीं है
उसे आज अपनी ज़रूरत नहीं है।
यकीं सब हमारे बिखरने लगे है
मगर मेरे होंठों पे तोहमत नहीं है
मुझे ग़म भी है मेरा दिल भी है टूटा
उसे हाँ भूलाने की हसरत नहीं है।
तेरे सारे वादे शहद से भी मीठे
तेरी बातों में पर हक़ीक़त नहीं है।
मुझे ग़म तो है रिश्ता टूटा हमारा
मगर ऐसा होने की हैरत नहीं है।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’