‘उसने क्या कहा था?’
लघुकथा
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उसने क्या कहा था?
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मनसुख राय अपनी आयु के बहत्तरवें वर्ष में प्रवेश कर चुके थे।पिछले वर्ष तक वे महिलाओं के कपड़े सिलते थे।बड़े प्रसिद्ध टेलर थे।दूर दूर से महिलायें उनसे कपड़े सिलवाने आती थीं।सबसे मुस्कुरा कर बोलना और उचित पारिश्रमिक उनकी विशेषता थी।पर अब दृष्टी कमजोर होने लगी थी कि मशीन में धागा नहीं डाला जाता था।एक दो बार तो गलत सिले गये कपड़ों के पैसे भी देने पड़ गये।बेटे ने कहा ‘पिता जी छोड़ो अब,बहुत कर लिया।’अब दिन भर कथा सुनते या शाम को घर का सामान ले आते जैन स्टोर से।एक दिन घर से निकले सामान लेने तो दुकान तक जाते जाते भूल गये।सोचने लगे’उसने(पत्नी)क्या कहा था?’याद आया साबुन और सौंफ।दोनों सामान लेकर घर पहुँचे तो पत्नी ने माथा पीट लिया। मैने तो दाल और गुड़ लाने को कहा था! मनसुख जी वापिस दुकान पर गये;सामान वापिस कर कागज पर लिखा सामान लेकर आये। धीरे धीरे जैन साहब भी समझ गये कि ये मतिभ्रम का शिकार हो गये हैं?जैन साहब ने उनके घर का फोन नं ले लिया।जब भी मनसुख जी सिर खुजाते कहते ‘उसने क्या कहा था?’वह झट से फोन करके पूछ लेते कि क्या सामान लेना है? घरवालों ने बाहर का काम कहना बंद कर दिया, कहीं ये न हो कि घर का रास्ता भूल जायें!बेचारे मनसुख राय अब घर की दहलीज़ पर अक्सर सिर हिलाते कुर्सी पर बैठे दिखाई देते हैं! आते जाते सबसे ‘राम,राम’ करते हैं।लोग उनको देख मुस्करा कर आगे निकल जाते हैं और बच्चे उनको देख ज़ोर से चिल्लाते हैं’ ‘उसने क्या कहा था?’और भाग जाते हैं।
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राजेश’ललित’
स्वरचित