उसके बस की बात नहीं है
बहता दरिया रोक के रखना ।
उसके बस की बात नहीं है ।।
जलते अंगारों पर चलना ।
उसके बस की बात नहीं है।।
जो फूलों सी पगडंडी पर ।
हो बैठा चलने का आदी ।।
वक्र पंथ में पग न रखा हो ।
राह चला जो सीधी सादी ।।
कंटक मग पर फिर पग धरना ।
उसके बस की बात नहीं है ।।..
जिसने तो अपने जीवन भर ।
आलस गह कर त्यागा श्रम को ।।
देखा नहीं कभी भी उसने ।
जीवन में मेहनत के क्रम को ।।
मातृ भूमि पर टूट बिखरना ।
उसके बस की बात नहीं है ।।..
जो तुम देख रहे खण्डहर है ।
यह पुताई से चमक रहा है ।।
जीर्ण शीर्ण है यह अंदर से ।
बाहर से ही दमक रहा है ।।
श्रृंगारों के बिना निखरना ।
उसके बस की बात नहीं हैं ।।..