उसके जाने का बहुत ही ग़म हुआ
उसके जाने का बहुत ही ग़म हुआ
धड़कनों का रोज़ फिर मातम हुआ
फ़र्क़ नीयत में हुआ दुश्मन की जब
फिर सबक देने का ये मौसम हुआ
वो जियाला चल रहा था आग पर
जो शरारा था वही शबनम हुआ
गोलियाँ दुश्मन की सीने पर चलीं
जोश दिल का पर नहीं कुछ कम हुआ
लोरियाँ तोपों की सुनकर चल पड़े
हौसला जीता यही हरदम हुआ
सैंकड़ों दुश्मन को मारा एक ने
सामने था जो अदू बेदम हुआ
पासबाँ थकते नहीं हैं उम्रभर
हो उजाला दिन का चाहे तम हुआ
होश भी है जान भी है पर है ग़म
आज फिर ‘आनन्द’ यूं पुरनम हुआ
शब्दार्थ:- अदू = दुश्मन, पासबाँ = रक्षक / चौकीदार, तम = अंधेरा, पुरनम = अश्रुपूरित
– डॉ आनन्द किशोर