उसकी दोस्ती में
मित्रता तो पूर्णिमा है
न कि अमावस है।
मित्रता बसन्त,शरद,
सावन का पावस है।
कोमल मनुहार है,
प्रेम की पुकार है।
मित्र न हो जीवन में,
नहीं पन साकार है।
वैसे तो बहुत मित्र,
बनते बिगड़ते।
जो भी है साँच सखा,
कभी न झगड़ते।
साँचा मीत जग में है,
मुरशिद व मुरारी।
जिनसे मिताई करके,
कभी नहीं हारी।
उसकी दोस्ती में,
नहीं कहीं खोट है।
रोज कर ले मित्रता,
सुख माधव की ओट है।