उल्लास
इशारों से वो कौन खींच रहा क्षितिज की ओर मेरा मन!
पलक्षिण नृत्य कर रहा आज जीवन,
बज उठे नव ताल बज उठा प्राणों का कंपन,
थिरक रहे कण-कण थिरक रहा धड़कन,
वो कौन बिखेर गया उल्लास इस मन के आंगन!
नयनों से वो कौन भर लाया मधुकण आज इस उपवन!
पल्लव की खुशबु से बौराया है चितवन,
मधुकण थोड़ी सी पी गया मेरा भी यह जीवन,
झंकृत हुआ झूमकर सुबासित सा मधुबन,
जीर्ण कण उल्लासित चहुंदिस हँसता उपवन!
इशारों से वो कौन खींच रहा क्षितिज की ओर मेरा मन!