उल्लास
रोक सकते हो मुझे,तो रोक लो।
बढ़ रहा हूॅं, चेतना -आलोक लो।
काट डालो तुम हमारे अस्त्र सब।
किंतु गह सद्ज्ञानरूपी लोक लो।
चेतना-सद्ज्ञान में ना त्रास है।
सो गए तो दीनता औ ह्रास है।
बढ़े जो भी निज हृदय में झाॅंक कर।
वही तो नव राष्ट्र का उल्लास है।
पं बृजेश कुमार नायक