उलझे रिश्ते
शुरू करूँ किस कलम से,
मैं लिखना अपनी गुस्ताखियाँ ।
अब तो इन्तजार करती रहती हैं ,
रक्षाबन्धन पर राखियाँ ।।
सीधे-साधे भोले-भाले,
रिश्ते जलेबी बन गये ।
महज कुछ परदों(फोटो)में रह गईं,
भाई-बहन की झाकियाँ ।।
किस्मत का लेख है जो ,
जलेबी भी अब इमर्ती में तब्दील है।।
मिठास पूरी हैं मगर
दूरी है तो खामोशी है ।
पास हैं तो दलील हैं ।।