उलझी हुई है जुल्फ
उलझी हुई है ज़ुल्फ़-ए-परीशां संवार दे
दरया-ए-ग़म में डूबी हूं मुझको उभार दे
उतरे न ता हयात कभी नश्श-ए-ख़ुलूस
ऐसी शराब दे मुझे जो ग़ज़ब का ख़ुमार दे
जी चाहता है आपके माथे को चूम लूं
मेरे तू इस ख्याल को पुख्ता क़रार दे
वह ग़म मुझे हर एक खुशी से अज़ीज़ है
जो बेकरार दिल को मुसलसल क़रार दे
मुझको भुला न दें कहीं हालात-ए-ज़िंदगी
ऐ दूर जाने वाले कोई यादगार दे
उल्फत का हक अदा तेरी कर दूंगी मैं ज़रुर
लेकिन यह शर्त है कि तू मुझे भी हिसार दे
कितनी हसीन तर है यह जलती हुई शमा
हाथों से छू लूं काश मुझे अख्तियार दे
शमा परवीन