उलझन !!
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उलझी हुई गाँठो में सुलझता एक धागा ढूंढ रही हूँ ,
युहीं बैठ ख्यालों में, खोई खुशी दुबारा बुन रही हूँ ।
बढ़ते उम्र के कदमों से, पीछे छूटे निशां देख रही हूं ,
यूँही सबकी घूरती निगाहों में, थोड़ी रहम खोज रही हूं !!
जज़्बातो के बस्तों में, अपनी खोई हंसी तलाश रहीं हूँ,
जहां भूल जाऊं सारा ग़म ऐसी महफ़िल, चाह रही हूं !!
ज़िंदगी के सभी सबक में क्या पाया है, यहीं सोच रही हूं,
बस अब आगे कैसे जियूँ , नए कुछ तरीके खोज रही हूं !!