उलझन
उलझन
उलझनों के झुर्मुटो का शहर सी यें जिन्दगी।
जुग्नुओ से क्षण खुशी के दर्शाती सी यें जिन्दगी।
सुखद क्षणो मे गाती गुनगुनाती सी यें सदा।
हो पल दु:खद तो नाक दम कर जाती सी यें
जिन्दगी।
नही शिकन हो मस्तक तो चाहत जगाती कभी।
ग़र भरे अश्रु चक्षु तो रुलाती सी यें जिन्दगी।
मुस्कुरा के टाले कष्ट गम के उड़ा दें बुलबुलें।
मात देती गम को घर अपना सजाती सी यें
जिन्दगी।
खिलते फूलो सी सदा खिल खिलाएं-ए-सुधा।
रहे जो सम हर भाव में उसे ही भाती सी यें जिन्दगी।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर