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23 Jan 2024 · 1 min read

उलझन

उलझन भी ज़रुरी है,
सब सुलझाने के लिए।

हर शख्स ज़रूरी है,
हर राज़ दफनाने के लिए।

बेकरार मै नहीं सिर्फ ,
कोई और भी है,
किस्मत आज़माने के लिए।

कुछ राज़ अक्सर रहेते है खामोश,
गुज़रा पल याद दिलवाने के लिए।।२

मैं उलझन में,
उलझन पर लिख रही हूँ बहुत कुछ,
जानती हूँ हर दरख़ की बदकिस्मती
फिर भी दरवाजों की तारीफे लिख रही हूँ मै,

सौ लानत कमा , नजाने क्यों
तहज़ीब – ओ – ईमान की बाते कर रही हूँ मै ,
लफ्ज़ बांधे है कुछ मैने ,
और कुछ बांधने बाकी है,
इन लफ्जो को कोरे कागज़ पर लिख रही हूँ मै,

कहने को कहती हूँ वो , जो आए मन में
लिखने को लिखती हूँ वो, जो आए मन में
मगर अब सब कुछ कहना और लिखना
मेरे मन में नही आता,
सब है शायद सही इस कारण,
खुदकी बनाई उलझन में खुद ही उलझ रही हूँ मै।।२

❤️स्कंदा जोशी

1 Like · 92 Views
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