उम्र हो गई छप्पन
कुछ तो शर्म करो अब उम्र हो गई छप्पन।
अभी तक गया नहीं लेकिन तेरा बचपन।
डांट खा कर पति की मैं ,कुछ देर रूकती हूं
मनमर्जी करती हूं फिर ,ऐसे कहां झुकती हूं।
नाती पोतों के संग मैं ,खूब उधम मचाती हूं
चाट पकौड़ी, गोलगप्पे पर पैसे खूब उड़ाती हूं।
पार्लर कभी नहीं गयी, एंटी एजिंग क्रीम लगाऊ मैं
हक सबका सुंदर दिखना,फिर काहे शरमाऊं मैं।
ऐसे ही खेल खेल में ,गृहस्थी मैं चला रही हूं
कभी योगा,कभी दवा से बढ़ती उम्र भुला रही हूं।
सुरिंदर कौर