उम्र के फासले
वक्त के आगे चले ना जोर अंजाना हो गया।
आंधियों के शोर में सहमा सयाना हो गया।।
महफिलें,रौनकें भी और थी अपनी रवायत,
छूटता हाथों से जाता कद ही बौना हो गया।
एक था अपना ज़माना,हसरतें अपनी जवां,
खो गए सपने सुहाने गुज़रा ज़माना हो गया ।
चढ़ गया मोटा सा चश्मा झुर्रियां चुगली करें,
रेत के मानिन्द जवानी किस्सा पुराना हो गया।
अब तलक जीते रहे औरों की खातिर जिंदगी,
वक्त जब अपना आया रिक्त ठिकाना हो गया।
तिनका- तिनका जोड़ता मैं दौड़ता दिन रात हूं,
जब जमा औ खर्च देखा,खाली खजाना हो गया।
जीता रहा सबके लिए और दौड़ता दिन रात ही,
उड़ गए पंछी सभी ,मैं काफ़िर बेगाना हो गया ।
मैं आईने से रोज पूछता यह भला क्या हो रहा?
सुख दुख की परछाइयों से अब सामना हो रहा।