उम्मीद
ए उम्मीद ! कैसे बढ़ाएं तुम्हारी ओर हम कदम ,
इन राहों में कांटे बहुत है ।
कैसे थामे तुम्हारा दामन ,दिखता ही नहीं ,
हमारी राहों में अंधेरे भी बहुत हैं।
फिर भी ज़िंदा है हम बस तेरे सहारे,
चूंकि रफीक तो बहुत हैं मगर सहारे बहुत कम है।
ए उम्मीद ! कैसे बढ़ाएं तुम्हारी ओर हम कदम ,
इन राहों में कांटे बहुत है ।
कैसे थामे तुम्हारा दामन ,दिखता ही नहीं ,
हमारी राहों में अंधेरे भी बहुत हैं।
फिर भी ज़िंदा है हम बस तेरे सहारे,
चूंकि रफीक तो बहुत हैं मगर सहारे बहुत कम है।