उफ! यह प्रदूषण
गौर से देखिए बाहर
घना काला बादल सा छाया चहुं ओर
सांस लेने में हो गई दिक्क्त
आंखों में जलन, सीने में जमघट
पर इसको आज की चर्चा का विषय
बनाने से पहले मानव जरा स्वयं की
ले ले सुधबुध
प्रकृति तो हम चेतनशील इंसानों
से है बहुत-बहुत घबराई हुई,
मानव न आ जाए यहां कहीं
यही सोच कर सहमी और घबराई हुई,
रौनक जिस इलाके में बढ़ जाती है इंसानों की
पेड़ों की आ जाती है शामत, क्यारी से बन जाती
है हर तरफ चमकीले शीशों के मॉलों की,
जब ईश्वर द्वारा आपूर्ति किए गए ऑक्सीजन के
सिलेण्डरों को,
स्वार्थसिद्धियों में गिराए जाओगे,
तो बताओ परिपक्वता से भरपूर शिक्षित बुद्धिजीवियों
इस प्राणवायु ऑक्सीजन का कारखाना कहां लगा पाओगे—
प्रकृति बयां कर रही है
हाले दिल हमारे अवचेतन का,
दमघोटू मानसिकता
धुधली-घुंधली सी बैचेनी,
दूषित विचारों की कालिमा
तमाम धन-दौलत, उपलब्धियों
शानो-शौकतों को बेच कर भी
खरीद न सकोगे स्वस्थता शरीर की,
मुस्कान होंठो की, सुकून जीवन का,
प्यार रिश्तों में, पवित्रता विचारों की
नहीं दोगे ध्यान] तो होती रहेगी ऐसे ही उथल-पुथल
भीतर और बाहर,
चूंकि प्रकृति तो जो लेती है
वही देती है,
तो तुम्हें क्या देना है यह सोचो
अपने लिए न सही अपने छोटे-छोटे नन्हीं अनखिली कलियों के लिए ही सही
जो तुम्हारे बाद घूमेगी तुम्हारी परछाई बन कर,
नाम रोशन करेगी तुम्हारे नाम का
तुम्हारे तथाकथित सरनेम को जो बढ़ाएगीं आगे
कुछ तो अच्छा सुंदर छोड़ जाओ उनके लिए प्रकृति की विरासत से
इस अनमोल संपत्ति पर भी तो हक है न उनका
तो लिख डालो अपने वसीयतनामे की चीजों पर हरियाली, पेड़
साफ सुथरी हवा, मनोहारी कल्याणकारी स्वच्छ प्रकृति की धरोहर
मीनाक्षी भसीन©सर्वाधिकार सुरक्षित