उपहार उसी को
हंस-हंसकर इक मस्ती लेकर,
जिसने सीखा है बलि होना ।
अपनी पीड़ा पर मुस्काकर,
औरों के कष्टों में सती होना ।।
इस जग में जितने जुर्म नहीं,
उतने सहने की आदत है जिनमें।
झूठों के साथ रहकर भी,
सच कहने की आदत है जिनमें ।।
जिसने मरना सीख लिया,
है जीने का अधिकार उसी को ।
कांटो के पथ से जो आया,
है फूलों का उपहार उसी को ।।
© अभिषेक पाण्डेय ‘अभि’