–उपदेश और अनुसरण–
हरिगीतिका छंद
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यह एक सममात्रिक छंद होता है,इसमें चार चरण होते हैं,प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं और यति 16-12 पर होती है,अंत में लघु गुरू मात्रा आती है।इस छंद में कम से कम दो चरणों के तुक मिलने अति आवश्यक हैं।यदि चारों चरणों के तुक मिलते हैं तो अतिसुंदर होगा।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित कविता देखिए—-
उपदेश और अनुसरण
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तालमेल सुखद अनुभव मनुज,आदर्श जीवन करे।
पुष्प-सुगंध आनंद देती,जब साँसों में है भरे।
मैं मारिए अभी हम होकर,मरेंगे दुख बिन लरे।
जीवन होगा संस्कारी यूँ,ज्यों माला-मणिक जरे।
बुरा किसी का कर चाहे सुख,ये संभव नहीं सुनिए।
अग्रज सदैव अग्रज ही रहता,अनुज न बनता गुनिए।
जो बोये सो काटे यह सच,सच को सदैव चुनिए।
आप भला जग भला दिखेगा,यह धारण कर रहिए।
उपदेश देना तभी सार्थक,जब अनुसरण खुद करे।
दूसरों में खुद को देखता,भवसागर पार तरे।
अपने लिए तो सभी जीते,होते देखकर हरे।
दूसरों के लिए जीते जो,इंसान वह हों खरे।
जानते हुए अजान हम हैं,यह दुख का कारण है।
मंज़िल हम खुद हैं सोचो तुम,पर नहीं निवारण है।
समझाते आए साधु संत,समझे फिर भी रण है।
माया महाठगिनी जीव ये,करती दुख-पोषण है।
संसार दुखों का घर है जी,कहा गौतम ने यही।
कल भी सच था आज भी सुनो,रहेगा कल भी सही।
समभाव हल है एक ही बस,चाहे रहो नभ-मही।
खुद को श्रेष्ठ कहना छोड़िए,श्रेष्ठ मालिक एक ही।
कवि–राधेयश्याम बंगालिया”प्रीतम”
प्रवक्ता हिंदी
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय किरावड़(भिवानी)
पिनकोड-127040
शपथ–
उपरोक्त मेरी मौलिक रचना है,इसके संदर्भ में किसी भी विवाद के लिए मैं स्वयं ज़िम्मेदार हूँगा।
शपथकार–
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”