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31 May 2024 · 1 min read

उपकार हैं हज़ार

अनगिनत है
उपकार कितने
कैसे मैं गिना पाता
शायद ईश्वर रूपी
विधाता से परिचय करा पाता

जब तुमने जो मांगा
वो तुम्हें मिला होगा
शायद थोड़ा रुक के पर
ख्वाहिशों का फूल खिला होगा

कभी चलना
तो कभी संभलना सिखाया
मात पिता ने जग
से परिचय करवाया

सिकुड़ जाती है छाती
जब बच्चा भूख से अकुलाता है
नयन भीगे न भीगे
माँ का आंचल भीग जाता है

जो मंद मंद मुस्कराता है
अपने दुखों को छिपाता
फिरता दुख को आनंद का
सरगम बताता है

वो पिता बच्चो की
खुशी के खातिर
अपने जीवन के रंगों
को भूल जाता है

शायद मैं इस विधाता
रूपी ईश्वर से परिचय करा पाता
शब्दों की त्रुटि को
शब्द को कैसे दे पाता

Language: Hindi
15 Views
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