उपकार हैं हज़ार
अनगिनत है
उपकार कितने
कैसे मैं गिना पाता
शायद ईश्वर रूपी
विधाता से परिचय करा पाता
जब तुमने जो मांगा
वो तुम्हें मिला होगा
शायद थोड़ा रुक के पर
ख्वाहिशों का फूल खिला होगा
कभी चलना
तो कभी संभलना सिखाया
मात पिता ने जग
से परिचय करवाया
सिकुड़ जाती है छाती
जब बच्चा भूख से अकुलाता है
नयन भीगे न भीगे
माँ का आंचल भीग जाता है
जो मंद मंद मुस्कराता है
अपने दुखों को छिपाता
फिरता दुख को आनंद का
सरगम बताता है
वो पिता बच्चो की
खुशी के खातिर
अपने जीवन के रंगों
को भूल जाता है
शायद मैं इस विधाता
रूपी ईश्वर से परिचय करा पाता
शब्दों की त्रुटि को
शब्द को कैसे दे पाता