उन श्रेष्ठ पिता के चरणों
देकर अपने नाम सदा ही
जिसने हमें तराशा
इक कोमल स्पर्श को पाकर
तन-मन जिसका हर्षा.
दृष्टि में कोमलता भरकर
जिसने सिखाई भाषा
देख के इक सुन्दर स्मित को
जिसने बोई आशा.
जिनके भावों के तूली से
भावुकता का प्रवाह हुआ
जिनके मौन संवेदन से
रोम-रोम आबाद हुआ.
ये देह-प्राण उर-स्पंदन
जिनके लिए है रोता
उन श्रेष्ठ पिता के चरणों में
झुकता रहेगा माथा.
भारती दास ✍️
गांधी नगर (गुजरात)