उन्हें आज वृद्धाश्रम छोड़ आये
क्षणभंगुर् सी ये जिंदगी अपनी, नित्य नवीन चलचित्र दिखाये।
कल सोये थे जिस आँचल में, उसे आज वृद्धाश्रम छोड़ आये।
नये कोपलों के खिलने पे, एक वक्त जो थे मुस्कुराये।
हँसी छीन कर उन होंठों की, घर से बाहर की उन्हें राह दिखाये।
सवार रहते थे उनके कंधों पे, उन्होंने हीं थे शहर-बाजार घुमाये।
लेकर सबकुछ आज उन्हीं का, उन्हीं को सारे हक़ गिनवाये।
नींद त्यागते थे वो रातों में, कि कहीं ज्वर ना दोहरा जाये।
थकी हुई उन आँखों की लिए, शेष कोई खाट बच ना पाये।
तिनका-तिनका जोड़ उन्होंने, हमारे सारे अरमान पुराये।
उम्र के इस अंतिम पड़ाव में, उन्हें हीं तिनकों में हम बिखेर आये।
भरी होती थी हमारी थाली, आधी थाल में भी वो इतराये।
आज उन्हें हीं खिलाने को, हमारे राशन कम पड़ जाये।
अश्रु देख हमारी आँखों की, सैदव जो सबसे लड़ जायें।
कलह ना कर तू मेरे घर में, ये कह कर, उन्हें अजनबियों में छोड़ आये।