उन्मुक्त जीवन
कभी उन्मुक्त जीवन देखा है !
देखो तो सही वहां
प्रकृति रहती है जहां
सघन अंधकार में भी प्रकाश फैलता है
झांकता है पेड़ों के बीच से
सुनहरा जीवन।
कांटे वहां भी पलते हैं
फूलों की मृदुलता भी रहती है
कोई परिहास नहीं
सभी सूरजमुखी
सभी गुलाब और कितने अजनबी
न जाने कितनी लताओं से घिरे
जी रहे उन्मुक्त जीवन।
पत्थर वहां भी लुढ़कते हैं
कुचलते हैं मर्यादाओं को
प्रकृति फिर भी संतुलित
ले जाती है कहीं रोपित करने को।
हम-तुम भी तो सूरजमुखी हैं
आओ खिलें, व्यापार ना करें
ये जो अम्बर है हमारा है
ये जो धरा है वह भी हमारा है
तो आओ चहु दिशा में प्यार करें।।