उनसे मिलने के ये आदाब बुरा लगता है
उनसे मिलने के ये आदाब,बुरा लगता है
लोग हो जाते हैं बेताब,बुरा लगता है
दिल में कुछ और ज़ुबाँ पर है कोई और ही बात
खुल के मिलते नहीं अहबाब,बुरा लगता है
चाँद भी, ताज भी, शबनम भी ,घटा भी, गुल भी
सिर्फ़ उनके लिए, अलक़ाब बुरा लगता है
मेरी सूरत को कभी चाँद के जैसा न कहा
उसको ढलता हुआ, महताब बुरा लगता है
यूँ हीं चेहरे पे अभी पर्दा गिरा रहने दे
आँख खुल जाये तो फिर ख़्वाब, बुरा लगता है
मेरे मौला तू मेरी आँख में आंसू भर दे
कोई सूखा हुआ तालाब, बुरा लगता है
कर लिया इस लिए दरिया से किनारा “आसी”
घर में आ जाये तो सैलाब,बुरा लगता है
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सरफ़राज़ अहमद आसी