उनके ही नाम
करते थे कितने ही जाम तमाम हम उनके ही नाम से!
करते थे यारौ से बातै हजारौ लाखो,उनके ही नाम से!!
गली-मौहल्ले मे होते थे बस हल्ले, उनके ही नाम से!
चाय-पान की दूकान पर चर्चे थे,बसउनके ही नाम के!!
पढाई-लिखाई भी होती थी शुरू.बस उनके ही नाम से!
नही देते थे तवज्जो ,मतलब नही था किसी काम से!!
मौज-मस्ती उडा,यारो से मिलना बिना किसी काम से!
बस उनके स्कूल की छुट्टी पर,मिलते थे एहतराम से!!
घर से स्कूल औ स्कूल से घर पँहुचाना बिना काम से!
जिन्दगी की हर खुशी पाबस्त थी,बस उनके ही नाम से!!
घरवालो ने तो हमै अहमक- निकम्मा ठहरा दिया था!
पर बडी संजीदगी से मतलब रखे,बस उनके ही नाम से!!
कभी बातो का कोई सिलसिला शुरू भी नही हुआ था!
इक सुबहो खबर शादी की मिली,बस गए हम काम से!!
बडी मेहनत और मशक्कत से,सजाई अर्थी मुहब्बत की!
चल पडे अगले दिन दूजी गली,लग गए हम फिर काम से!!
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित
बोधिसत्व कस्तूरिया अधिवक्ता कवि पत्रकार 202 नीरव निकुंज Ph2 सिकंदरा आगरा -282007
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