उनकी ही कमी खलती है
नजरें क्या मिली उनकी पलकों में झूल गए
उनकी गली में आकर इश्क क्या है भूल गए
उनका ठिकाना बदला हम परेशान हो गए
हमारी नई पड़ोसन बनी हैं हम हैरान हो गए
हर रात चांद में उसकी ही तस्वीर देखता हूं
उसकी मुस्कान में अपनी ही तकदीर देखता हूं
इश्क के गांव में सिवा दर्द के कुछ नहीं मिलते
इस रेगिस्तान में सिवा कांटो के कुछ नहीं खिलते
सुना है धूप में चेहरा ढककर घर से निकलती हैं
किसका ख्याल आते ही बार-बार फिसलती हैं
हाथों में किताब और बालों में सजा गुलाब था
हमारे सवालों का आज उसने दिया जवाब था
दिल के हर पन्नों पर लिखा उनका ही नाम था
उनका इंतजार करना मानो अब हमारा काम था
आजकल शाम भी उनके ही इशारे पर ढलती है
यारों की महफिल में उनकी ही कमी खलती है