उनकी आदत है रूठ जाने की
उनकी आदत है रूठ जाने की
हमको भी ज़िद उन्हे मनाने की
राज़े-उल्फ़त छिपा के रक्खा है
लग न जाये नज़र ज़माने की
कोशिशें बार-बार की हमने
दिल का रिश्ता सदा निभाने की
उम्रभर की सज़ा मिली हमको
एक पत्थर से दिल लगाने की
ढल चुकी शाम और तन्हाई
है न उम्मीद उनके आने की
आंधियों से मिली सदा हिम्मत
इन चराग़ों को फिर जलाने की
आइना सच उसे दिखा देता
क्या ज़रूरत थी सच बताने की
उसकी ‘आनन्द’ फ़िक्र है हर पल
जिसको ज़िद है कभी न आने की
– डॉ आनन्द किशोर