उनका कौन दर्द समझेगा
सूखी रोटी न मिलती कभी
रोज पतीली खाली है
भूख नहीं छोडती मुझको
हर बेरंग दिवाली है।
घर कर गई गरीबी मुझमें
मेरी झोली खाली है ।
हाल बेहाल बच्चों का होता
खाली मेरी थाली है।
उनको दर्द समझ क्या आये
जिनके घर खुशहाली है।
व्यवस्था के मारे है ये
आयी अब बदहाली है ।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र विप्र