उदास
उदास रहना
और उदासी को अपनी दासी रखना
हुनर कोई खास नहीं
जिंदगी के प्रभात में
मन का कपाट बन्द कर
अंधरे को चूम कर उठाना
और चेहरे की खूंटी पे टांग देना
और बुझा देना चटक रंगा मुस्कान को
कि तैरता रहे अंधेरा
भीतर के जगमगाते उजालों पर
कि उकुरू बैठा रहे प्रेम का परिंदा
बिरह के तेजाबी नाले पर
जो निगल ले, तुम्हारे अंदर उगे
दूध से धवल पंखुड़ियों वाली गुलदाउदी को
कि सब कुछ झुलसा झुलसा दिखे
अंदर से बाहर तक
हुनर कोई खास नहीं
बात तो तब बने
जब चेहरे की तपती रेत पे
अंदर के दहका में भी खिलता रहे
गुलदाउदी स्वेत पंखुड़ियों पर
सुबह की सुनहरी धूप लिए
कि जगमगा जाए
तुम्हारे आस पास फैले चेहरों का गुलिस्ताँ
उदास रहना, हुनर कोई खास नहीं …
~ सिद्धार्थ