“उदास सांझ”
“उदास सांझ”
जागी-जागी कभी सोई-सोई
पास खड़ी वह खोई-खोई
चाहे दुनिया कुछ भी कह ले
वेदना न होती बांझ,
समय के दरवाजे पर ठिठकी हुई
वह उदास सांझ।
“उदास सांझ”
जागी-जागी कभी सोई-सोई
पास खड़ी वह खोई-खोई
चाहे दुनिया कुछ भी कह ले
वेदना न होती बांझ,
समय के दरवाजे पर ठिठकी हुई
वह उदास सांझ।