उदास आंखों का नूर ( पिता की तलाश में प्रतीक्षा रत पुत्री )
ये आंखें क्यों है इतनी उदास ,
जैसे इसे हो किसी की आस ।
ढूंढती फिरती है हर चेहरों में,
आंखों में अपनेपन का आभास ।
यादों में रह गए उनके निशान,
और निशानी रह न गई पास ।
वो हाथ छुड़ाकर चले गए यूं,
उसने थामने का किया प्रयास।
उनकी ममता ,स्नेह और दुलार ,
याद जब आए हो जाती है उदास ।
देखते ही जो चमक उठती थी ,
अब रहती है हर समय उदास ।
कहां से लाए उन्हें ढूढंकर जो ,
थे उसका नूर ,उसका उजास ।
हालांकि उसे पता है यह सत्य ,
उनका लौट के आना नहीं आसां।
फिर भी जाने क्यो ये आंखें,
उनकी याद में हो जाती है उदास ।