उदासी
कुछ अजीब सा , न जाने क्या हो गया है।
कुछ करीब सा , न जाने क्या खो गया है ।।
पहले हम ऐसे न थे, जो अब हो गए,
कुछ नसीब सा, न जाने क्या सो गया है।।
दुआओं की कमी न थी , अमीर थे हम ,
कुछ गरीब सा , न जाने क्या धो गया है ।।
रबी की फसलें थी दिल में , जो कट चुकी ,
कुछ खरीफ़ सा, न जाने क्या बो गया है ।।
साथ होकर भी वो ग़मज़दा सा है, पता नही ।
कुछ रक़ीब सा , न जाने क्या रो गया है ।।
धड़कनें खामोश है मेरी, कुछ दिनों से ,
कुछ हबीब सा, न जाने क्या तो गया है ।।
✍✍ देवेन्द्र