उतर कर आ
प्रभो फिर से धरा पर तू उतर आ , कष्ट हरने को
यहाँ चहु ओर बैठे नाग काले , रोज डसने को
इरादें नेक हो सकते न , उनके इस जमीं पर अब
लगा कर आग दुश्मन ने , हमें छोड़ा सुलगने को
यहा खाकर बजाते है , पड़ोसी देश की वो क्यों
शरण दी मुल्क ने उन्हें , जमीं पर इस बसे रहने को
गरीबों की जलें जब झोपड़ी , तब होलि हो उनकी
नजर आते न अब आसार , लोगों के सुधरने को
कभी भूलें न करना , देश को कमजोर करने की
जरूरत गर पडी तो , हम रहे तैयार मरने को
खडे है जो जवाँ , इस देश को शत्रु से बचाने को
तभी उठती तड़प उनमें , तिरंगे में लिपटने को
सिखाता है वतन मेरा , करो सबसे मुहब्बत तुम
मगर लौं जल उठी अब , मजहबी रज बन बिखरने को