उड़ान ~ एक सरप्राइज
मेजर धीरेन्द्र वर्मा अपने सेब के बाग में खड़े माली से बातचीत में व्यस्त थे कि उनके मोबाइल की घंटी बज उठी। ज्यों ही फोन
उठाया, दूसरी तरफ से घर के वर्षों पुराने उनके नौकर वीरू की आवाज सुनायी दी। वीरू बता रहा था कि घर पर कोई मेहमान उनसे मिलने आये हैं। मेजर वर्मा द्वारा मेहमानों का परिचय पूछने पर वीरू ने कहा कि उनका कहना है कि वह केवल मेजर वर्मा को ही अपना परिचय देंगे। ऐसा सुनकर मेजर वर्मा सोच में पड़ गये। फिर वीरू को कहा कि वह शीघ्र ही घर पहुँच रहे हैं। तब तक वह मेहमानों को ड्राइंग रूम में बैठकर प्रतीक्षा करने को कहे।
फिर बाग के माली को काम समझा मेजर वर्मा गाड़ी में बैठकर घर की ओर चल दिये। मेजर धीरेन्द्र वर्मा भारतीय सेना के रिटायर्ड मेजर थे। शिमला में उनके पैतृक सेब के बाग व अपना घर था। रिटायर्ड होने के बाद पत्नी के साथ वह शिमला आकर ही रहने लगे थे। पहले तो यह घर उनके पिता की देखरेख में था। जब से मेजर साहब ने आर्मी ज्वाइन की, उनके पिता जी अकेले रह गये थे। मेजर वर्मा की माताजी का उनके बचपन में ही देहान्त हो जाने के पश्चात उनके पिता ने ही उनका पालन-पोषण किया था। उनके आर्मी में जाने के बाद उनके पिता यहाँ शिमला में रहकर पैतृक घर व बागों की देखभाल करते थे। स्वयं मेजर वर्मा छुट्टियों में परिवार सहित अक्सर पिता से मिलने शिमला आते और कुछ समय यहाँ बिताकर ड्यूटी पर लौट जाते। किन्तु उनके रिटायर्डमेंट में कुछ ही समय बाकी था कि पिता भी स्वर्गवासी हो गये। तत्पश्चात वीरू ही सम्पूर्ण व्यवस्था देखता रहा।
अब मेजर वर्मा रिटायर्डमेंट के पश्चात अपनी पत्नी सहित यहाँ लौट आये थे और अपने बागों की देखभाल में समय बिताने लगे थे। स्वयं उनके परिवार में अब उनका इकलौता बेटा अथर्व एवं उनकी पत्नी थी। अथर्व सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। वह जर्मनी में जाॅब कर रहा था। वर्माजी की पत्नी दो दिन पूर्व अपने भाई केपरिवार से मिलने कुल्लू गयी थीं। ऐसे में घर लौटते हुए मेजर वर्मा घर में आये मेहमानों के विषय में सोच रहे थे और अनुमान लगाने का प्रयास कर रहे थे कि कौन हो सकता है?
अपने छोटे से खूबसूरत बँगले की पार्किंग में गाड़ी खड़ी करके मेजर वर्मा घर के भीतर की ओर बढ़े और ज्यों ही उन्होंने घर के अन्दर कदम रखा, सामने का दृश्य उन्हें आश्चर्य चकित करने के लिए पर्याप्त था। घर में उनकी पत्नी व पत्नी के भाई सहित उनका बेटा अथर्व मौजूद था। उन्हें देखते ही अथर्व ने आगे बढ़कर उनकेचरण-स्पर्श किये। मेजर वर्मा ने भी गर्मजोशी पूर्ण स्नेह से उसे गले से लगा लिया। फिर सारा परिवार एकत्रित होकर बैठा और आपस में बातचीत करने लगा। वीरू सभी के लिए चाय-नाश्ता ले आया।
चाय-नाश्ता आरम्भ होने से पहले, अथर्व अचानक अपने स्थान से उठकर आकर सोफे पर बैठे अपने पिता मेजर वर्मा के निकट जमीन पर बैठ गया और उसने उनके घुटनों पर अपना सिर रख दिया। मेजर वर्मा कुछ समझ पाते, इससे पूर्व ही उन्हें आभास हुआ कि अथर्व सिसक रहा है। मेजर वर्मा ने चौककर अथर्व का सिर अपने हाथों में लेकर उसका चेहरा ऊपर उठाया। स्नेहपूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने उसके अचानक जर्मनी से
भारत आने और इस प्रकार रोने का कारण पूछा, तो अथर्व ने बिना उत्तर दिये पुनः उनके घुटनों पर अपना सिर रख दिया।
मेजर वर्मा असमंजस की स्थिति में थे कि उनकी पत्नी ने रहस्योद्घाटन करते हुए बताया कि पिछले हफ्ते ही जर्मनी से अथर्व का फोन आया था कि वह भारत लौट रहा है। पिछले लगभग डेढ़ साल से जब से कोरोनाके कारण
विश्व में परिस्थितियाँ बदली हैं, अथर्व को जर्मनी में अनेक समस्याओं से दो-चार होना पड़ा। लगभग एक वर्ष पूर्व उसे वहाँ कोरोना हो गया। जिस दौरान उसे न केवल बीमारी अपितु जाॅब में भी अनेक समस्याओं का सामना करना
पड़ा। विदेशी धरती पर अनेकों समस्याओं के मध्य बीमारी के दौरान एकान्तवास के बीच सर्वाधिक चिन्ता उसे भारत में रह रहे अपने माता-पिता को लेकर होती। दउसे बार-बार यह एहसास होता कि इन विपरीत परिस्थितियों में उसे यहाँ अपने परिवार के साथ होना चाहिए था। जाॅब तो मेहनत करने व टैलेंट होने पर कहीं भी, कभी भी की जा सकती है। किन्तु माता-पिता, परिवार एवं अपने साथी क्या दोबारा मिल सकते हैं? बस उसी क्षण उसने स्वदेश लौटने का निर्णय ले लिया।
अतः परिस्थितियाँ बेहतर होते ही आवश्यक प्रक्रियाएँ पूर्ण कर उसने तुरन्त भारत के लिए फ्लाइट पकड़ ली और स्वदेश लौट आया। भारत के लिए फ्लाइट लेने से पूर्व उसने कुल्लू में अपने मामाजी को फोन पर समस्त जानकारी एवं अपने शीघ्र दिल्ली पहुँचने के विषय में बताया और कहा कि वह अचानक घर पहुँच कर अपने पिताजी को सरप्राइज देना चाहता है। इसलिए मामाजी मम्मी को अपने घर कुल्लू बुला लें, जिससे कि सब लोग एक साथ मिलकर मेजर वर्मा को सरप्राइज दे सकें।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक :- ११/०८/२०२१.